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झूठे कमांडो ट्रेनर शिफूजी शौर्य भारद्वाज की असलियत
झूठे कमांडो ट्रेनर शिफूजी शौर्य भारद्वाज की असलियत.
शिफू जी शौर्य भारद्वाज. एलीट फ़ोर्सेज़ के इस स्वघोषित ट्रेनर पर हमने सोमवार को एक स्टोरी की थी जिसमें उसकी ठगी सामने लाए थे. इसी कड़ी में भाग-2 हम लाए हैं जिसमें एेसी और बातें हैं जो अब तक लोगों को गलत बताई गईं या बताई जा रही हैं. हमने अभिषेक शुक्ला से भी बात की जिन्होंने सबसे पहले शिफू के खिलाफ सबूत इकट्ठे किए और उसकी शिकायत मंत्रालयों और विभिन्न संस्थानों में की. जब पहले पहले उन्होंने शिफू को लेकर सच लोगों के सामने रखा तो लोगों ने उन्हें पाकिस्तानी, गद्दार, देशद्रोही कहा. लेकिन जब उन्होंने सबूत रखे तो लोगों को पता हुआ कि बात तो सही थी. अभिषेक को धमकियों वाले फोन भी आ रहे हैं. अनुमान है कि शिफू की ओर से ही ये फोन करवाए जा रहे हैं क्योंकि अपने पहले के वीडियोज में भी शिफू ने खुलेआम लोगों को जान से मारने की धमकियां दी हैं. हमारे पास इन धमकियों के ऑडियो मौजूद हैं. इसमें लोग भद्दी गालियां देते हैं. वे लोग खुद को कमांडोज़ बताते हैं. जब उनसे पूछा जाता है कि आप कमांडो कब बने? कहां रहे? सबूत दीजिए कि कमांडो हैं? तो धमकी देने वाले कुछ जवाब नहीं देते बस गालियां देते रहते हैं. जब उन्हें बोला जाता है कि आर्मी में यही डिसिप्लिन सिखाया जाता है तो वो और भी गालियां देते हुए अपने सड़कछाप होने का सबूत दे देते हैं.
खैर, इस फ्रॉड कथा का दूसरा हिस्सा शुरू करते हैं.
शिफू ने बड़े कॉन्फिडेंस के साथ ये बात रखी कि उसने कभी भी, कहीं पर भी ये क्लेम नहीं किया है कि वो कभी आर्मी में था या वो कहीं कोई कमांडो था या उसने कमांडोज़ को ट्रेनिंग दी है. लेकिन उसकी वेबसाइट पर ठीक यही लिखा हुआ था.
ये क्लेम भी शिफू का है. 29 साल आर्मी में रहने का क्लेम. विकीपीडिया के रिजेक्ट किये हुए ड्राफ्ट में शिफू का इयर ऑफ़ बर्थ 1973 लिखा हुआ था. ये पेज विकीपीडिया ने रिजेक्ट कर दिया. क्योंकि इसे पूरी तरह से वेरीफाई नहीं किया जा सका. जनवरी 2017 में इस पेज के ड्राफ्ट को भी डिलीट आकर दिया गया.
मान लेते हैं कि ये आदमी 1973 में पैदा हुआ था. यानी आज के वक़्त में ये 44 साल का है. इसमें से अगर इसने 29 साल आर्मी में गुज़ारे हैं तो क्या ये 15 साल की उम्र में आर्मी में भर्ती हो गया था? नहीं 44 तो इसे 50 का मान लेते हैं. 50 की उम्र का मतलब 21 की उम्र में ये आर्मी में भर्ती हो गया था? फिर इसने मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग लेकर शिफू का टाइटल कब ले लिया? आर्मी में रहते हुए या बाद में?
इन तमाम अखबारों में भी शिफू की छद्म वीर गाथा छपी है. इसे कमान्डोज़ को ट्रेनिंग देते हुए दिखाया जा रहा है. लेकिन इन तस्वीरों को सत्यापित करने का कोई एविडेंस नहीं है.
9 फरवरी को अपने यूट्यूब खाते पर पोस्ट किए वीडियो में शिफू ने कहा कि उसने कभी सैनिक होने जैसे दावे नहीं किए. लेकिन फिर 13 फरवरी को उसके एक इन्स्टाग्राम अकाउंट पर भी हैशटैग्स में ‘कमांडो ट्रेनर’ और ‘इंडियन आर्म्ड फोर्सेज़’ लिखा जाता है. वेबसाइट पर जो बातें शिफू ने हल्ला होने के बाद हटा ली, वो बातें इंस्टाग्राम पर अभी भी कह रहा है.
वो खुद मिशन प्रहार नाम की एक संस्था चलाता है. खुद को फ़कीर बताता है. लेकिन एक मेल हमें मिली है जो शिफू की कंपनी की प्रतिनिधि की बताई जाती है. इसकी पुष्टि नहीं हुई है लेकिन ऑफिशियल लगती है. इसके मुताबिक किसी न्यूज़ शो में जाना हो तो वो महंगी गाड़ी मांगता है और फ्लाइट का सबसे ऊंचा टिकट यानी बिज़नेस क्लास. एक घंटे किसी इवेंट में जाने का 2 लाख रुपया लेता है. अपने किसी भी शो का आधा पैसा 30 दिन पहले ही एडवांस में लेता है. कहता है कि ये डोनेशन है. इस फ़कीर को रहने के लिए फाइव स्टार या उससे ऊपर का होटल चाहिए. क्यों? वहां की आब-ओ-हवा फकीरों के लिए ज़्यादा मुफ़ीद होती है क्या? अगर ये मेल वाकई में उसका है तो शिफू की असली छवि और सामने आती है. इससे तो यही लगता है कि उसने कंपनी पैसा कमाने के लिए खोल रखी है. देश के एक समझदार वर्ग को गद्दार बोल-बोलकर वो अपने फॉलोअर्स बढ़ा रहा है ताकि इस इमेज मेकओवर से कमाई कर सके.
खुद को शिफू कहने वाला ये बंदा कहता है कि उसे चाइनीज़ भाषा आती है. जबकि चाइनीज़ जैसी कोई भाषा नहीं होती.
चाइनीज़ बस एक भौगोलिक क्षेत्र का नाम है. वहां से जुड़ी चीज़ों को चाइनीज़ कहते हैं. वहां की भाषा तो मेंडरिन और केंटनीज़ है.
वैसे इसने पहले अपना जन्म स्थान पंजाब का एक शहर बताया था. मगर मध्य प्रदेश के ब्रांड अम्बेसडर वाले एपिसोड के बाद ये खुद को जबलपुर में पैदा हुआ बताने लगा. इसके मुंह से निकलती पंजाबी सुन इस बात पर शक होता ही है कि ये जबलपुर में पैदा हुआ है.
शिफू शौर्य भारद्वाज. या दीपक दुबे? जो भी है. जब तक स्पष्टीकरण न दे, बड़ा बहरुपिया ही लग रहा है. इसे फिल्मों में ही सेटल हो जाना चाहिए क्योंकि अच्छी ऐक्टिंग कर ही रहा है. कभी वेबसाइट हैक हो जाती है तो कभी उस पर मौजूद सारा मसाला ही गायब हो जाता है. कमांडो ट्रेनर से एक आम भारतीय बन जाता है. इंसान अगर कमांडो ट्रेनर है तो वो आम आदमी नहीं हो सकता. इतने ताकतवर इंसान को क्या ज़रूरत पड़ गयी फिल्मों में जाने की? मेजर दीपक राव ने 17 साल दिए CQB टेक्नीक सैनिकों को देने में. मगर इस के एक दिन में 24 घंटे भी इतने बड़े वाले होते हैं कि ये पुलिस, कमांडो और न जाने कितनी प्रकार की एलीट फ़ोर्सेज़ को ट्रेनिंग देने के साथ-साथ महिलाओं को प्रशिक्षण दे रहा है और फिल्मों में भी काम कर रहा है. और यूट्यूब पर लोगों को जान से मारने की बात करके, औरतों को गाली देकर और देश को चरम रास्ते पर ले जाने का काम भी कर ले रहा है.
इनमें सबसे दुख की बात है कि अपनी ब्रांडिंग करने के लिए इस फर्जी आदमी ने भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों की तस्वीरों का भौंडा इस्तेमाल किया है. कहां भगत सिंह का बलिदान और कहां इस आदमी की ओछी सोच! इसे तो ये भी नहीं पता कि भगत सिंह का वर्ल्ड व्यू क्या था.
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